Thursday, 5 May 2016

                                                   आतंकवाद 
आतंकवाद का अर्थ किसी विनाशकारी शक्ति द्वारा विभिन्न तरीकों से भय की स्थिति को उत्पन्न करना हैं । किसी भी प्रकार के आतंकवाद से चाहे वे क्षेत्रीय हो, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय हो – सभी के कारण देश में असुरक्षा, भय और संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । आतंकवाद की सीमा कोई एक राज्य, देश अथवा क्षेत्र नहीं है । आज यह एक अंतरराष्ट्रीय समस्या के रूष में उभर रही हैं । यदि किसी एक देश पर दूसरा देश आक्रमण करता है, तो समस्या का समाधान दोनों देशों की सरकारों की बातचीत, संधि आदि से हो जाता है । लेकिन आतंकवाद का कोई हल नहीं हैं । आतंकवाद का लक्ष्य केवल आतंक फैलाना है सिनेमाघरों, रेलगाड़ियों, भीड़-भाड़ वाले इलाकों में बम विस्फोट द्वारा आतंक फैलाना एक आम घटना बन गई है । सिनेमाघर में फिल्म देखते हजारों दर्शकों की बम के विस्फोट के कारण मृत्यु हो जाती है । रेल अथवा वायुयान में अपने गंतव्य की ओर बढ़ते यात्रियों की यात्रा बम के धमाके के साथ ही समाप्त हो जाती है । आतंकवाद के कारण आज जीवन अनिश्चित बन गया है । कभी भी, कहीं भी कुछ भी हो सकता है । आतंकवाद का उद्देश्य क्या है? आतंकवादियों को इस कुकृत्य से क्या मिलता है? इस का उत्तर बहुत सरल है । आतंकवादियों का उद्देश्य मात्र आतंक फैलाना है । उन्हें इससे कुछ प्राप्त नहीं होता, बल्कि हानि ही होती होगी । इससे उनके संगठन का नाम खराब होता है । नैराश्य की भावना के कारण वे आतंक फैलाते है । यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्र भारत में भी पुलिस तथा अन्य कानून संबंधी संगठन निर्दोष जनता पर अत्याचार करते हैं । बहुत से राजनैतिक शक्तियाँ द्वारा पथभ्रष्ट युवकों को काम समाप्त हो जाने के बाद तथाकथित ‘मुठभेड़ों’ में पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ता है । इनमें कई बेकसूर लोगों की जानें चली जाती हैं और अपराधी फरार हो जाता है । यह भी देखा गया है कि मारे गए निर्दोष व्यक्तियों के मित्र, भाई बदले की भावना से स्वयं आतंकवादी बन जाते हैं । जिस देश में रक्षक ही भक्षक बन जाए, वहाँ आतंकवाद का विस्तार और अधिक होता जाएगा । भारत का प्रत्येक नागरिक आतंकवाद का विरोधी है । इससे कुछ भी प्राप्त नहीं होता है । लेकिन कुछ देश यह मानते हैं कि यह सरकारी तंत्र के आतंकवाद का जवाब हैं । इन देशों में अपराधी, भ्रष्ट राजनीतिज्ञ, तस्कर खुले आम घूमते रहते हैं, उनको पकड़ने के लिए कानून के पास कोई सबूत नहीं हैं । कई बार अपराधी राजनीतिज्ञों के साथ मिलकर देश में आतंक फैलाते हैं । इस प्रकार के भ्रष्ट शासन तंत्र में अपराधी कभी भी गिरफ्त में नहीं आते है । यह माना जाता है कि कुंठित व्यक्ति पूर्ण निराशा की स्थिति में बंदूक उठाता हैं । यूगांडा में ईदी अमीन का शासन इस बात का उदाहरण है कि बन्दूक की नोंक पर किस तरह सत्ता में परिवर्तन आता है और लोग सत्ता का दुरुपयोग किस सीमा तक कर सकते हैं । इस प्रकार की स्थिति में अपराधी को जीवन और मृत्यु में कोई अंतर नहीं दिखाई देता । वह आतंकवाद का दामन इस आशा में थामें रखता है कि उसे सम्मानजनक मौत प्राप्त होगी, लेकिन यह उसकी भूल होती है । आतंकवदियों का जीवन छोटा होता है और मौत बहुत भयानक । कभी-कभी तो वे पकड़े जाने के भय से आत्महत्या भी कर लेते हैं । आतंकवाद को रोकने का एकमात्र उपाय यह है कि शासन तंत्र अपने दायित्वों को समझे और यह प्रयास करे कि समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त हो और सभी को समान रूप से कानून का संरक्षण प्राप्त हो । जनता ने अपने जिन प्रतिनिधियों को अपने बहुमूल्य समर्थन द्वारा चुना है, उनका कर्तव्य है कि वे जनता को अच्छा जीवन और सुरक्षा प्रदान करें । यदि सभी नागरिकों के साथ समान ढंग से व्यवहार किया जाए, उनके पिछड़ेपन को संवैधानिक तरीकों से सुधारा जाए तो बहुत हद तक यह समस्या सुलझ सकती हैं । प्राचीन काल में आतंकवाद के संबंध में कोई जानता भी नहीं था । पिछले कुछ वर्षो से इसने भयंकर रूप धारण कर लिया है । निस्संदेह आतंकवाद शासन-विरोध की एक विकृत रूप है । आतंकवादियों की मांग कितनी भी उचित क्यों न हो, लेकिन आतंक फैलाकर उन्हें मनवाने का तरीका बहुत ही निर्दयता और कायरतापूर्ण है । इससे निर्दोष व्यक्तियों की जान और सार्वजनिक सम्पत्ति नष्ट हो जाती है । इसी कारण आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के निराकरण के प्रयास हो रहे हैं ।
                                                     वन्य जीव
संसार के विभिन्न भागों में बड़े-बड़े जंगल पाए जाते हैं । इन जंगलों में जंगली जीव निवास करते हैं । जंगली जीवों को अपने आवास से भोजन एवं सुरक्षा प्राप्त होती है । लेकिन जैसे-जैसे जंगल कटते जा रहे हैं वैसे-वैसे इनकी संख्या में कमी आती जा रही है | जंगल में बड़े आकार वाले भयानक एवं हिंसक जीवों का निवास होता है । हाथी जंगल का एवं भूमि का सबसे बड़ा जीव है लेकिन यह शाकाहारी होता है । शेर, बाघ, भालू, चीता, लोमड़ी, अजगर आदि बड़े शरीर वाले जीव मांसाहारी होते हैं । शेर को जंगल का राजा माना जाता है क्योंकि यह बहुत शक्तिशाली होता है तथा इसकी चाल बड़ी रोबीली होती है । वन में हाथी ही एकमात्र जीव है जो इसका सामना करने की सामर्थ्य रखता है । इसीलिए मनुष्य हाथी पर सवार होकर जंगल भ्रमण पर निकलते हैं । हाथियों को देखकर शेर उनके पास नहीं आता है । जंगल में जहाँ बड़े खूँखार जीव रहते हैं वहीं जिराफ हिरन नीलगाय बंदर जैसे शाकाहारी जीवों की संख्या भी कम नहीं होती । शाकाहारी जंगली जीव वन में उपलब्ध हरी पत्तियों फलों एवं घास खाकर जीवित रहते हैं । मांसाहारी हिंसक जीव अपेक्षाकृत छोटे या कम शक्तिशाली जीवों का शिकार करते हैं एवं उनका मांस खाते हैं । इस प्रकार जंगल में आहार की एक संतुलित शृंखला है जो जंगल के अस्तित्व को बनाए रखने में मदद करती है । वन्य प्राणियों में विभिन्न प्रकार के पक्षियों एवं सरीसृपों का भी प्रमुख स्थान होता है । जंगलों में तोता, मोर, कौआ,कबूतर, चील, बाज, मैना, गौरैया जैसे सभी प्रमुख पक्षी निवास करते हैं । इनके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के साँप, बिच्छू, गिलहरी एवं भयंकर आकृति वाले कीड़े यहाँ बड़ी संख्या में रहते हैं । मधुमक्खियाँ तितलियाँ भौरई बर्रे जैसे उड़ने वाले कीट-पतंगे वन की शोभा बढ़ाते हैं । जंगल में चारों ओर हरियाली होती है । यहाँ भांति- भांति के पेड़ होते हैं जिन पर पक्षियों, बंदरों, गिलहरियों, साँपों आदि का निवास स्थान होता है । बंदर पेड़ की शाखाओं पर रहता है, पक्षी पड़ा पर घोंसला बनाते हैं, साँप पेड़ के कोटरों में रहते हैं । हाथी, नीलगाय, जिराफ, हिरन जैसे जीव किसी अनुकूल स्थान पर अपने-अपने समूहों में रहते हैं । शेर गुफा में रहना पसंद करता है । पानी के लिए जंगली जीव जंगल के झरनों, तालाबों या नदियों पर निर्भर होते हैं ।जंगली जीव न केवल जंगल की शोभा बढ़ाते हैं, अपितु इसकी रक्षा भी करते हैं । परंतु औद्‌योगीकरण एवं अन्य मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पिछले कुछ दशकों में जंगलों का भारी विनाश हुआ है । परिणामस्वरूप जंगली जीवों का जीवन संकटग्रस्त हो गया है । कई जंगली जीव तो ऐसे हैं जिनकी जाति ही नष्ट होती जा रही है । ज्यों-ज्यों वन सिकुड़ते जा रहे हैं, त्यों-त्यों इनके अस्तित्व पर खतरा मँडराता जाता है । विलुप्त होते जा रहे जंगली जीवों को बचाने के लिए सरकार ने कठोर नियम बनाए हैं । दुर्लभ जंगली जीवों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है । इन्हें समुचित आवास उपलब्ध कराने तथा संरक्षित रखने के लिए देश भर में वन्य जीव अभयारण्यों तथा प्राणी उद्‌यानों की स्थापना की गई है । कुछ लालची लोग अपने तात्कालिक लाभ के लिए दुर्लभ जंगली जीवों को मार देते हैं । बाघों को उनकी खाल के लिए, हाथियों को उनके दाँत के लिए, कस्तुरी मृगों को कसूरी के लिए तथा कुछ जन्तुओं को मांस के लिए मौत की नींद सुला दिया जाता है । कुछ जंगली जीव जब स्वभाववश वन से बाहर निकलकर खेतों में भटकते हैं तो ग्रामीण लोग उन्हें मार डालते हैं । इस तरह की गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगाने की आवश्यकता है । जंगली जीवों की सुरक्षा का सर्वोत्तम उपाय है वनों के क्षेत्रफल में वृद्धि करना । यदि विस्तृत वन क्षेत्र होंगे तो वन्य प्राणी उसमें स्वच्छंदतापूर्वक निवास कर सकते हैं । अत: इस दिशा में गंभीरतापूर्वक कार्य करने की आवश्यकता है ।
                                                            World Of Photography


Photography is a hobby that just about anyone can take up regardless of age. Practically everyone owns a camera these days. Considering that there are different kinds of cameras available in the market, this is a hobby that is accessible to anyone who is interested. Getting started is not difficult. Probably the only really tough part is to decide what kind of photography you would like to focus on – while some people enjoy landscape photography, some specialize in portraits and some love children, nature and wildlife photography. Most aspiring photographers wistfully look at professional photographers’ magazines and journals wondering whether they can ever take pictures like those. Much of photography involves experimentation. The best part is, you do not need an expensive camera to indulge in photography as a hobby. In fact, these days with digital cameras, you don’t even have to spend thousands to print your pictures to see how they turned out. All you have to get is a decent camera, take as many pictures as you want and upload them to your computer to see how they look. Also you can make several adjustments to get the picture just the way you want it.Photography is a hobby that just about anyone can take up regardless of age. Practically everyone owns a camera these days. Considering that there are different kinds of cameras available in the market, this is a hobby that is accessible to anyone who is interested. Getting started is not difficult. Probably the only really tough part is to decide what kind of photography you would like to focus on – while some people enjoy landscape photography, some specialize in portraits and some love children, nature and wildlife photography. Most aspiring photographers wistfully look at professional photographers’ magazines and journals wondering whether they can ever take pictures like those. Much of photography involves experimentation. The best part is, you do not need an expensive camera to indulge in photography as a hobby. In fact, these days with digital cameras, you don’t even have to spend thousands to print your pictures to see how they turned out. All you have to get is a decent camera, take as many pictures as you want and upload them to your computer to see how they look. Also you can make several adjustments to get the picture just the way you want it.
                                 आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर निबंध

किसी भी राष्ट्र अथवा समाज में शिक्षा सामाजिक नियंत्रण, व्यक्तित्व निर्माण तथा सामाजिक व आर्थिक प्रगति का मापदंड होती है । भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है जिसे सन् 1835 में लागू किया गया । जिस तीव्र गति से भारत के सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक परिदृश्य में बदलाव आ रहा है उसे देखते हुए यह आवश्यक है कि हम देश की शिक्षा प्रणाली की पृष्ठभूमि, उद्‌देश्य, चुनौतियों तथा संकट पर गहन अवलोकन करें ।
सन् 1835 ई॰ में जब वर्तमान शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गई थी तब लार्ड मैकाले ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अंग्रेजी शिक्षा का उद्‌देश्य भारत में प्रशासन के लिए बिचौलियों की भूमिका निभाने तथा सरकारी कार्य के लिए भारत के विशिष्ट लोगों को तैयार करना है ।इसके फलस्वरूप एक सदी तक अंग्रेजी शिक्षा के प्रयोग में लाने के बाद भी 1935  में भारत की साक्षरता दस प्रतिशत के आँकड़े को भी पार नहीं कर पाई । स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की साक्षरता मात्र 13 प्रतिशत ही थी ।
इस शिक्षा प्रणाली ने उच्च वर्गों को भारत के शेष समाज में पृथक् रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । ब्रिटिश समाज में बीसवीं सदी तक यह मानना था कि श्रमिक वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने का तात्पर्य है उन्हें जीवन में अपने कार्य के लिए अयोग्य बना देना । ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली ने निर्धन परिवारों के बच्चों के लिए भी इसी नीति का अनुपालन किया ।लगभग पिछले दो सौ वर्षों की भारतीय शिक्षा प्रणाली के विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह शिक्षा नगर तथा उच्च वर्ग केंद्रित, श्रम तथा बौद्‌धिक कार्यों से रहित थी । इसकी बुराइयों को सर्वप्रथम गाँधी जी ने 1917 में गुजरात एजुकेशन सोसायटी के सम्मेलन में उजागर किया तथा शिक्षा में मातृभाषा के स्थान और हिंदी के पक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर तार्किक ढंग से रखा । स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में शांति निकेतन, काशी विद्‌यापीठ आदि विद्‌यालयों में शिक्षा के प्रयोग को प्राथमिकता दी गई । सन् 1944  में देश में शिक्षा कानून पारित किया गया । स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत हमारे संविधान निर्माताओं तथा नीति-नियामकों ने राष्ट्र के पुननिर्माण, सामाजिक-आर्थिक विकास आदि क्षेत्रों में शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया । इस मत की पुष्टि हमें राधाकृष्ण समिति (1949), कोठारी शिक्षा आयोग (1966) तथा नई शिक्षा नीति (1986) से मिलती है शिक्षा के महत्व को समझते हुए भारतीय संविधान ने अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए शिक्षण संस्थाओं व विभिन्न सरकारी अनुष्ठानों आदि में आरक्षण की व्यवस्था की । पिछड़ी जातियों को भी इन सुविधाओं के अंतर्गत लाने का प्रयास किया गया । स्वतंत्रता के बाद हमारी साक्षरता दर तथा शिक्षा संस्थाओं की संख्या में नि:संदेह वृद्‌धि हुई है परंतु अब भी 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या निरक्षर है । दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि स्वतंत्रता के बाद विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा व प्राविधिक शिक्षा का स्तर तो बढ़ा है परंतु प्राथमिक शिक्षा का आधार दुर्बल होता चला गया । शिक्षा का लक्ष्य राष्ट्रीयता, चरित्र निर्माण व मानव संसाधन विकास के स्थान पर मशीनीकरण रहा जिससे चिकित्सकीय तथा उच्च संस्थानों से उत्तीर्ण छात्रों में लगभग 40 प्रतिशत से भी अधिक छात्रों का देश से बाहर पलायन जारी रहा । देश में प्रौढ़ शिक्षा और साक्षरता के नाम पर लूट-खसोट, प्राथमिक शिक्षा का दुर्बल आधार, उच्च शिक्षण संस्थानों का अपनी सशक्त भूमिका से अलग हटना तथा अध्यापकों का पेशेवर दृष्टिकोण वर्तमान शिक्षा प्रणाली के लिए एक नया संकट उत्पन्न कर रहा है । पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के नए चेहरे, निजीकरण तथा उदारीकरण की विचारधारा से शिक्षा को भी ‘उत्पाद’ की दृष्टि से देखा जाने लगा है जिसे बाजार में खरीदा-बेचा जाता है । इसके अतिरिक्त उदारीकरण के नाम पर राज्य भी अपने दायित्वों से विमुख हो रहे हैं । इस प्रकार सामाजिक संरचना से वर्तमान शिक्षा प्रणाली के संबंधों, पाठ्‌यक्रमों का गहन विश्लेषण तथा इसकी मूलभूत दुर्बलताओं का गंभीर रूप से विश्लेषण की चेष्टा न होने के कारण भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली आज भी संकटों के चक्रव्यूह में घिरी हुई है । प्रत्येक दस वर्षों में पाठ्य-पुस्तकें बदल दी जाती हैं लेकिन शिक्षा का मूलभूत स्वरूप परिवर्तित कर इसे रोजगारोन्मुखी बनाने की आवश्यकता है । हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली गैर-तकनीकी छात्र-छात्राओं की एक ऐसी फौज तैयार कर रही है जो अंततोगत्वा अपने परिवार व समाज पर बोझ बन कर रह जाती है । अत: शिक्षा को राष्ट्र निर्माण व चरित्र निर्माण से जोड़ने की नितांत आवश्यकता है ।